अंतराष्ट्रीय मज़दूर दिवस २०१८
ये जंग है जंगे आज़ादी
आज़ादी के परचम के तले ।
हम हिन्द के रहने वालों की, महकूमों की मजबूरों की
आज़ादी के मतवालों की दहक़ानो की मज़दूरों की
ये जंग है जंगे आज़ादी
आज़ादी के परचम के तले ।
सारा संसार हमारा है, पूरब पच्छिम उत्तर दक्कन
हम अफ़रंगी हम अमरीकी हम चीनी जांबाज़ाने वतन
हम सुर्ख़ सिपाही जुल्म शिकन, आहनपैकर फ़ौलादबदन ।
ये जंग है जंगे आज़ादी
आज़ादी के परचम के तले ।
वो जंग ही क्या वो अमन ही क्या दुश्मन जिसमें ताराज न हो
वो दुनिया दुनिया क्या होगी जिस दुनिया में स्वराज न हो
वो आज़ादी आज़ादी क्या मज़दूर का जिसमें राज न हो ।
ये जंग है जंगे आज़ादी
आज़ादी के परचम के तले ।
लो सुर्ख़ सवेरा आता है, आज़ादी का आज़ादी का
गुलनार तराना गाता है, आज़ादी का आज़ादी का
देखो परचम लहराता है, आज़ादी का आज़ादी का ।
ये जंग है जंगे आज़ादी
आज़ादी के परचम के तले ।
मख़दूम मोहिउद्दीन की ये पंक्तियाँ आज मज़दूर दिवस पर याद करने से ज़्यादा समझने के ज़रूरत है।-
"हिंदुस्तान एक आज़ाद देश बहुत तकलीफों से उभर कर बना है, पर इस देश में कड़ोड़ो मज़दूर आज़ाद नहीं है इन मज़दूरों की भागी दारी आज़ादी के सात दसक बाद भी अंधेरे में है। सामाज का निर्माण श्रमिक वर्ग के श्रम से होता है पर हम नागरिक और हमारे चुने गए जन प्रतिनिधि इस बात को तरजीह देना भूल जाते है । मज़दूर मेहनत करना नहीं भूलता पर हम उसकी मज़दूरी देना भूल जाते है या फिर कोशिस रहती है उसकी मज़दूरी का जितना कम दाम दें उतना अच्छा। मुनाफा हमारा हो पर मज़दूरी उसकी- अपार संघर्ष,त्याग और अमानवीय परिस्थितियों में अपने श्रम का प्रदर्शन करना ही मज़दूर वर्ग को समाज के जड़ पर बैठा संघर्षील समाजनिर्माणक घोषित करता है। अब हम पर ये निर्भर करता है की हम कैसे समाज का निर्माण करें जिसमें मेहनतकशवर्ग की इज़्ज़त और मायने सांझे जाएँ या फिर उसके श्रम का शोषण कर हम मुनाफे की महलो में खुश रहें।"
पूरे मज़दूर वर्ग को मज़दूर दिवस पर मेरा नमन और सलाम।
आज़ादी के परचम के तले ।
हम हिन्द के रहने वालों की, महकूमों की मजबूरों की
आज़ादी के मतवालों की दहक़ानो की मज़दूरों की
ये जंग है जंगे आज़ादी
आज़ादी के परचम के तले ।
सारा संसार हमारा है, पूरब पच्छिम उत्तर दक्कन
हम अफ़रंगी हम अमरीकी हम चीनी जांबाज़ाने वतन
हम सुर्ख़ सिपाही जुल्म शिकन, आहनपैकर फ़ौलादबदन ।
ये जंग है जंगे आज़ादी
आज़ादी के परचम के तले ।
वो जंग ही क्या वो अमन ही क्या दुश्मन जिसमें ताराज न हो
वो दुनिया दुनिया क्या होगी जिस दुनिया में स्वराज न हो
वो आज़ादी आज़ादी क्या मज़दूर का जिसमें राज न हो ।
ये जंग है जंगे आज़ादी
आज़ादी के परचम के तले ।
लो सुर्ख़ सवेरा आता है, आज़ादी का आज़ादी का
गुलनार तराना गाता है, आज़ादी का आज़ादी का
देखो परचम लहराता है, आज़ादी का आज़ादी का ।
ये जंग है जंगे आज़ादी
आज़ादी के परचम के तले ।
मख़दूम मोहिउद्दीन की ये पंक्तियाँ आज मज़दूर दिवस पर याद करने से ज़्यादा समझने के ज़रूरत है।-
"हिंदुस्तान एक आज़ाद देश बहुत तकलीफों से उभर कर बना है, पर इस देश में कड़ोड़ो मज़दूर आज़ाद नहीं है इन मज़दूरों की भागी दारी आज़ादी के सात दसक बाद भी अंधेरे में है। सामाज का निर्माण श्रमिक वर्ग के श्रम से होता है पर हम नागरिक और हमारे चुने गए जन प्रतिनिधि इस बात को तरजीह देना भूल जाते है । मज़दूर मेहनत करना नहीं भूलता पर हम उसकी मज़दूरी देना भूल जाते है या फिर कोशिस रहती है उसकी मज़दूरी का जितना कम दाम दें उतना अच्छा। मुनाफा हमारा हो पर मज़दूरी उसकी- अपार संघर्ष,त्याग और अमानवीय परिस्थितियों में अपने श्रम का प्रदर्शन करना ही मज़दूर वर्ग को समाज के जड़ पर बैठा संघर्षील समाजनिर्माणक घोषित करता है। अब हम पर ये निर्भर करता है की हम कैसे समाज का निर्माण करें जिसमें मेहनतकशवर्ग की इज़्ज़त और मायने सांझे जाएँ या फिर उसके श्रम का शोषण कर हम मुनाफे की महलो में खुश रहें।"
पूरे मज़दूर वर्ग को मज़दूर दिवस पर मेरा नमन और सलाम।
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