राष्ट्रीय किसान दिवास-

भारत कृषि प्रधान देश नहीं बल्कि कृषि बाहुल्य देश कहलाना चाहिए और ये बात राष्ट्रीय किसान दिवस के दिन हमें सुनिश्चित करने की जरूरत है।

किसान का उगाया अनाज खातें सब है
पर गुणगान कोई नहीं गाता।

महाराष्ट्र किसान लॉन्ग मार्च के दौरान एक आदिवासी किसान

एक किसान की ज़िंदगी इस देश की सबसे काम आंके जाने वाली ज़िंदगियों में से एक है।
रोज़ मर्रा की ज़िंदगी में दिन से शाम और कभी तो रात से भोर तक अंतहीन मेहनत की किसी को खबर तक नहीं रहती।

चिलचिलाती धुप यो यही शीतलहरी की ठण्ड पेट भरना सबका, यही है एक मात्रा लक्ष्य।
मुनाफा तो दूर,न्यूनतम मूल के दर्शन भी दुर्लभ है।

महिला किसान धान की बोआई करते हुए।

दुर्भाग्य है इस देश का की एक महिला किसान को किसान नहीं माना जाता और लाखों भूमिहीन किसान हर सुबह इस डर के साथ शुरू करते है की कहीं गैरमजरुआ ज़मीन से उन्हें बेदखल न कर दिया जाए।

अगर हमारे समाज और चुने गए प्रतिनिधियों की प्राथमिकता किसान और कृषि नहीं बनते है तो आने वाले समय में हम इन्हे विलुप्त पाएंगे और दुर्गति हमारा भाग्य होगा।

Comments

Popular posts from this blog

The Fear of British Rulers

India's Unity under threat

DEMONETIZATION- A PROXY WAR ON BLACK MONEY